http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%86%E0%A4%A6%E0%A4%AE%E0%A5%80_%E0%A4%B9%E0%A5%88_%E0%A4%89%E0%A4%A0_%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%B0%E0%A4%BE_%E0%A4%88%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%82_%E0%A4%89%E0%A4%A0%E0%A4%BE_/_%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%A6_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%A4_%E2%80%99%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%A6%E2%80%99&feed=atom&action=historyआदमी है उठ ज़रा ईमान की बातें उठा / प्रमोद रामावत ’प्रमोद’ - अवतरण इतिहास2024-03-28T15:13:57Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%86%E0%A4%A6%E0%A4%AE%E0%A5%80_%E0%A4%B9%E0%A5%88_%E0%A4%89%E0%A4%A0_%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%B0%E0%A4%BE_%E0%A4%88%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%82_%E0%A4%89%E0%A4%A0%E0%A4%BE_/_%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%A6_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%A4_%E2%80%99%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%A6%E2%80%99&diff=108445&oldid=prevअनिल जनविजय: नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रमोद रामावत ’प्रमोद’ }} {{KKCatGhazal}} <poem> आदमी है उठ …2011-02-28T20:41:38Z<p>नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रमोद रामावत ’प्रमोद’ }} {{KKCatGhazal}} <poem> आदमी है उठ …</p>
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|रचनाकार=प्रमोद रामावत ’प्रमोद’ <br />
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आदमी है उठ ज़रा ईमान की बातें उठा ।<br />
अब ज़रूरत है कि हिन्दुस्तान की बातें उठा ।<br />
<br />
प्यार, रिश्ते, दीनो-ईमाँ, हक़, शराफ़त सब गए,<br />
चल सियासत में लुटे, सामान की बातें उठा ।<br />
<br />
फ़र्ज से अव्वल, कोई ज़ज्बा नहीं होता, वजीर<br />
ज़िद रियाया की है, अब सुलतान की बातें उठा । <br />
<br />
आदमी कमतर नहीं होता, ज़ुबाँ से, रंग से<br />
हक़ की ख़ातिर लड़, उठा सम्मान की बातें उठा । <br />
<br />
सर्दियों में अल-सुबह, अख़बार का बण्डल लिए<br />
काँपते मासूम से, वरदान की बातें उठा ।<br />
<br />
रोटियों का मोल करता है वो अक्सर जिस्म से<br />
क्रूर सौदेबाज के अहसान की बातें उठा ।<br />
<br />
ख़ुद ठगा जाता है अक्सर, पर कभी ठगता नहीं<br />
जिक्रे इन्साँ पर उसी, इंसान की बातें उठा ।<br />
</poem></div>अनिल जनविजय