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आदमी है उठ ज़रा ईमान की बातें उठा / प्रमोद रामावत ’प्रमोद’

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आदमी है उठ ज़रा ईमान की बातें उठा ।
अब ज़रूरत है कि हिन्दुस्तान की बातें उठा ।
 
प्यार, रिश्ते, दीनो-ईमाँ, हक़, शराफ़त सब गए,
चल सियासत में लुटे, सामान की बातें उठा ।
 
फ़र्ज से अव्वल, कोई ज़ज्बा नहीं होता, वजीर
ज़िद रियाया की है, अब सुलतान की बातें उठा ।
 
आदमी कमतर नहीं होता, ज़ुबाँ से, रंग से
हक़ की ख़ातिर लड़, उठा सम्मान की बातें उठा ।
 
सर्दियों में अल-सुबह, अख़बार का बण्डल लिए
काँपते मासूम से, वरदान की बातें उठा ।
 
रोटियों का मोल करता है वो अक्सर जिस्म से
क्रूर सौदेबाज के अहसान की बातें उठा ।
 
ख़ुद ठगा जाता है अक्सर, पर कभी ठगता नहीं
जिक्रे इन्साँ पर उसी, इंसान की बातें उठा ।