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आदम का जिस्म जब के अनासर से मिल बना / सौदा

आदम का जिस्म जब के अनासिर <ref>पंचतत्व</ref> से मिल बना
कुछ आग बच रही थी सो आशिक़ का दिल बना
 
सरगर्म-ए-नाला आज कल मैं भी हूँ अन्द्लीब
मत आशियाँ चमन में मेरे मुत्तसिल बना

जब तेशा कोहकन ने लिया हाथ तब ये इश्क़
बोला के अपनी छाती पे रखने को सिल बना

जिस तीरगी<ref>अँधेरा</ref>से रोज़ है उशाक़<ref>आशिक़</ref>का सियाह<ref>काला</ref>
शायद उसी से चेहरा-ए-ख़ूबाँ पे तिल बना


लब ज़िन्दगी में कब मिले उस लब से ऐ! कलाल
साग़र हमारी ख़ाक को मत कर के गिल बना

अपना हुनर दिखा देंगे हम तुझ को शीशागर
टूटा हुआ किसी का अगर हमसे दिल बना

सुन सुन के अर्ज़-ए-हाल मेरा यार ने कहा
"सौदा" न बातें बैठ के या मुत्तसिल बना