Last modified on 4 जुलाई 2014, at 21:22

आदरें अधिक काज नहि बंध / विद्यापति

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:22, 4 जुलाई 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आदरें अधिक काज नहि बंध।
माधव बूझल तोहर अनुबंध।।
आसा राखह नयन पठाए।
कत खन कउसलें कपट नुकाए।।
चल चल माधव तोहें जे सयान।
ताके बोलिअ जे उचित न जान।।
कसिअ कसउटी चिन्हिअ हेम।
प्रकृति परेखिअ सुपुरुख पेम।।
सउरभें जानिअ कमल पराग।
नयने निवेदिअ नव अनुराग।।
भनइ विद्यापति नयनक लाज।
आदरें जानिअ आगिल काज।।