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आधुनिकता / महेश उपाध्याय

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सैक्रीन होठों पर
लगाकर
घूमते हैं हम
करते हैं बात
दिन-रात
फिरते ही पीठ
उगल देता है कैलशियम
                हमारा अहम्
कितने आधुनिक हो गए हैं हम ।