Last modified on 14 सितम्बर 2020, at 22:41

आने दो वसन्त को / सुरेश विमल

गाने दो
गाने दो वसन्त को
एक उत्सव-प्रिय
चिड़िया के कंठ से
नर्तन करने दो
चंचल तितलियों की
पाखों से।

बहने दो
वासंती भागीरथी को
सगर पुत्रों सी
अभिशप्त बस्तियों की
देह को
स्पर्श करते हुए

प्रतिबिम्बित होने दो
वासंती सूर्य
उस बालक की
निस्तेज आंखों को
जो दौड़ने से पहले ही
लगता है थका हुआ
और हंसने दो उसे
उन्मुक्त
इंद्रधनुषी फूलों में

रोको मत
रोको मत वसन्त को
आने दो उसे
घर के सभी दरवाज़ों
और खिड़कियों से

आने दो
आने दो बसन्त को
उतरने दो उसे
देह-प्राणों में
सब
सब दिशाओं में।