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आन बनी-3 / सुधीर मोता
अनिल जनविजय
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वह पल छिन का
सुख
था या त्रास
अनमोल जिन्हें
जाना घड़ियाँ
वे जा कर भी
गईं नहीं
अपने पर ही
आन बनी।