आपका अपना कोई चेहरा नहीं
आइना क्या आपने देखा नहीं
धूप की बातों से वो थकता नहीं
जो कभी भी धूप में निकला नहीं
जिसकी ख़ातिर उम्र हमने काट दी
आज तक वो सामने आया नहीं
चलतेचलते थक गई है ज़िन्दगी
रास्ते में एक भी साया नहीं
देखिए तो मेहरबानों की है भीड़
सोचिए तो एक भी अपना नहीं