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आपका जो भी आब-ओ-दाना है / महेश कटारे सुगम

आपका जो भी आब-ओ-दाना है ।
मौत की गोद से उठाना है ।

दिल के कमरे में झाँकना कैसा,
ख़्वाहिशों का कबाड़ख़ाना है ।

आप चाहें निकाल सकते हैं,
दफ़्न दिल में बड़ा खज़ाना है ।

मुफ़लिसी से है मेरा याराना,
मेरे घर उसका आना-जाना है ।

दर्द की ज़द में है सारी दुनिया,
ज़ख़्म इसका ग़रीबख़ाना है ।

लोग सारे हमारे अपने हैं,
प्यार को बाँट कर निभाना है ।

जिस्म तो इक सराय जैसा है,
रोज़ साँसों का आना-जाना है ।