आपने शुभ लाभ लिक्खा था बही पर,
लिख दिया किसने मगर घाटा उसी पर !
है कहीं कुछ तो ग़लत अब मानिए भी,
इक नज़र तो डालिए अपनी बदी पर !
आप में जो ख़ूबियाँ हैं ख़ूब हैं वो,
क्या कहें इस दौर की इस त्रासदी पर !
आपकी हर प्यास दुश्मन मछलियों की,
देखिए जाकर किसी सूखी नदी पर !
क्या उड़ेंगे लोग पत्थर हो गए जो,
और फिर अब आप भारी हैं सभी पर !