Last modified on 13 अगस्त 2018, at 12:19

आप अपनी तलाश करता हूँ / रतन पंडोरवी

 आप अपनी तलाश करता हूँ
इस क़दर दम ख़ुदा का भरता हूँ

मर के जीता हूँ जी के मरता हूँ
इश्क़ को कामयाब करता हूँ

बात चुप रह के भी नहीं बनती
बात करते हुए भी डरता हूँ

हुस्न पर नाज़ है अगर तुम को
मैं वफ़ाओं पे नाज़ करता हूँ

मार डाला है मुझ को जीने ने
ऐसे जीने पे फिर भी मरता हूँ

ऐ 'रतन' क्या नयी रकाबत है
आप अपने पे रश्क़ करता हूँ।