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आप उपवन में आए / राकेश खंडेलवाल

आपके पग उठे जब इधर की तरफ़
यों लगा मुस्कुराने लगी हर दिशा
छंद की पालकी में विचरने लगे
भाव मन की उभरती हुई आस के

डाल से फूल गिरने लगे राह में
आपके पाँव को चूमने के लिये
शाखें आतुर लचकती हुई हो रहीं
आपके साथ में झूलने के लिये
होके पंजों के बल पर उचकते हुए
लग पड़ी दूब पग आपके देखने
झोंके पुरबाई के थाम कर उँगलियाँ
चल पड़े साथ में घूमने के लिये

आप उपवन में आये तो कलियाँ खिली
रंग पत्तों पे आने नये लग पड़े
इक नई तान में गुनगुनाने लगे
वॄंद मधुपों के, नव गीत उल्लास के

सावनी चादरें ओढ़ सोया, जगा
आपको देखने आ गया फिर मदन
बादलों के कदम लड़खड़ाने लगे
पी सुधा जो कि छलकी है खंजन नयन
पत्तियों के झरोखों से छनती हुई
धूप रँगने लगी अल्पना पंथ में
मलती पलकें लगीं जागने कोंपलें
आँख में अपने ले मोरपंखी सपन

चलते चलते ठिठक कर हवायें रूकीं
खिल गये ताल मे सारे शतदल कमल
तट पे लहरों के हस्ताक्षरों ने लिखे
गुनगुनाते हुए गीत मधुमास के

चंपई रंग में डूब कर मोतिया
खुद ब खुद एक गजरे में गुँथने लगा
एक गुंचा गुलाबों का हँसता हुआ
आपको देख कर रह गया है ठगा
जूही पूछे चमेली से ये तो कहो
देह कचनार को क्या मिली आज है
गुलमोहर आपको देख कर प्रीत के
फिर नये स्वप्न नयनों में रँगने लगा

भूल कर अपने पारंपरिक वेष को
आपके रंग में सब रँगे रह गये
जिन पे दूजा न चढ़ पाया कोई कभी
सारे परिधान थे जो भी सन्यास के