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आप और हम सलाम भी न करें / राज़िक़ अंसारी

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आप और हम सलाम भी न करें नफ़रतें इतनी आम भी न करें

कुछ न बोलें तेरे ख़िलाफ़ मगर ख़ुद से क्या अब क़लाम भी न करें

कर नहीं पाएं गर हिफाज़त आप क़त्ल का इंतज़ाम भी न करें

कुछ न कुछ हम से काम है वर्ना आप यूँ तो सलाम भी न करें

लोग हमदर्दियां जताने लगें दर्द को इतना आम भी न करें

सिर्फ़ उलझे रहें सियासत में लोग क्या काम वाम भी न करें </poem>