भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आप की याद आती रही रात भर / मख़दूम मोहिउद्दीन
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:29, 30 जनवरी 2011 का अवतरण ("आप की याद आती रही रात भर / मख़दूम मोहिउद्दीन" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
आप की याद आती रही रात भर
चश्मे नम मुस्कुराती रही रात भर ।
रात भर दर्द की शम्मा जलती रही
ग़म की लौ थरथराती रही रात भर ।
बाँसुरी की सुरीली सुहानी सदा
याद बन बन के आती रही रात भर ।
याद के चाँद दिल में उतरते रहे
चाँदनी जगमगाती रही रात भर ।
कोई दीवाना गलियों में फिरता रहा
कोई आवाज़ आती रही रात भर ।