भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आप क्या जानें मुझपै क्या गुज़री / यगाना चंगेज़ी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
+
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=यगाना चंगेज़ी
 +
|संग्रह=
 +
}}
  
 
आप क्या जानें मुझपै क्या गुज़री।
 
आप क्या जानें मुझपै क्या गुज़री।

18:42, 13 जुलाई 2009 का अवतरण

आप क्या जानें मुझपै क्या गुज़री।

सुबहदम देखकर गुलों का निखार॥

दूर से देख लो हसीनों को।

न बनाना कभी गले का हार॥


अपने ही साये से भड़कते हो।

ऐसी वहशत पै क्यों न आए प्यार॥


तू भी जी और मुझे भी जीने दे।

जैसे आबाद गुल से पहलू-ए-ख़ार॥


बेनियाज़ी भली कि बेअदबी।

लड़खडा़ती ज़बाँ से शिकवये-यार॥


बन्दगी का सबूत दूँ क्योंकर।

इससे बहतर है कीजिये इन्कार॥


ऐसे दो दिल भी कम मिले होंगे।

न कशाकश हुई न जीत न हार॥