भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आप क्या जानें मुझपै क्या गुज़री / यगाना चंगेज़ी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: आप क्या जानें मुझपै क्या गुज़री। सुबह दम देखकर गुलों का निखार॥ द...) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
+ | |||
आप क्या जानें मुझपै क्या गुज़री। | आप क्या जानें मुझपै क्या गुज़री। | ||
− | + | सुबहदम देखकर गुलों का निखार॥ | |
दूर से देख लो हसीनों को। | दूर से देख लो हसीनों को। | ||
पंक्ति 21: | पंक्ति 22: | ||
बेनियाज़ी भली कि बेअदबी। | बेनियाज़ी भली कि बेअदबी। | ||
− | + | लड़खडा़ती ज़बाँ से शिकवये-यार॥ | |
+ | |||
+ | |||
+ | बन्दगी का सबूत दूँ क्योंकर। | ||
+ | |||
+ | इससे बहतर है कीजिये इन्कार॥ | ||
+ | |||
+ | |||
+ | ऐसे दो दिल भी कम मिले होंगे। | ||
+ | |||
+ | न कशाकश हुई न जीत न हार॥ |
14:30, 12 जुलाई 2009 का अवतरण
आप क्या जानें मुझपै क्या गुज़री।
सुबहदम देखकर गुलों का निखार॥
दूर से देख लो हसीनों को।
न बनाना कभी गले का हार॥
अपने ही साये से भड़कते हो।
ऐसी वहशत पै क्यों न आए प्यार॥
तू भी जी और मुझे भी जीने दे।
जैसे आबाद गुल से पहलू-ए-ख़ार॥
बेनियाज़ी भली कि बेअदबी।
लड़खडा़ती ज़बाँ से शिकवये-यार॥
बन्दगी का सबूत दूँ क्योंकर।
इससे बहतर है कीजिये इन्कार॥
ऐसे दो दिल भी कम मिले होंगे।
न कशाकश हुई न जीत न हार॥