रचनाकार=सर्वत एम जमाल संग्रह= }} साँचा:KKCatGazal
आप क्या रोशनी बो रहे थे
लोग बीनाइयां खो रहे थे
अब घुटन से परेशान क्यों हो
आज तक तो यही ढो रहे थे
आदमी भेड़िया तब हुआ जब
भेड़िये आदमी हो रहे थे
लोग शर्मिन्दा थे पिछली रुत पर
आप क्या सोच कर रो रहे थे
कौन तोड़े गुलामी की बेडी
सब के सब चैन से सो रहे थे
बहती गंगा पे ग़मगीन क्यों हैं
हाथ तो आप भी धो रहे थे
आदमी किस तरह हो सकेंगे
जानवर भी हमीं तो रहे थे