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आया सै बसंत / रामफल चहल

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पूरे विश्व मैं भारत ऐकला इसा देश बतावै सैं
जड़ै गर्मी वर्षा हेमन्त शरद शिशिर बसंत आवैं सैं
पेड़ा पै नई कांपल आग्यी इब सर्दी लई सै जा
चारूं तरफ मस्ती सी छाई हर किसान उठया गा
एक बाप कै दो बेटे सै बड्डा सै बणया किसान
छोटा पहरा देवै सीमा पै सै वो पूरा वीर जवान
खेतां म्हं खड़ी फसल देख कै बोल्ली बड्डे की घरआल़ी
सारी टूंम पहर जाऊं मेले म्हं ले घर की कुंजी ताल़ी
था बड्डा स्याणा सहज सहज घरआली न लाग्या समझावण
मेले म्हं धक्के खावण के लाग्या वो नुकसान गिणावण
बडयां की बतलाअण सुणी जब फौजण की बी दूख्खी पांस्सू
पिया की याद सतावण लाग्यी भरग्ये आंख्यां म्हं आंस्सू
जेठ जिठाणी की बात सुणी तो फोैजण के दिल तैं लिकड़ी हूक
बिरहण न नहीं सुहाई कोयल जो रही थी बाग म्हं कूक
बोल्ली कूक कूक कोयल प्यारी तू दिल नै खोल कै कूक
कर अपणे जिगरे के चाहे मेरे दिल के कर सौ टूक
कोयल बोल्ली मेरे कूकण तैं दिल के क्यूंकर होते टूक बता
जिनके पिया परदेस गए उनके दुख का तन्नै नहीं पता
किस कारण पिया परदेस गए वो भेद बताणा चाहिए
मेरा पिया सरहद पै पहरा दें यो हे क्षत्री का धर्म बताइए
तेरे पति न चिट्ठी गेर कै तूं अपणे घरां बुलाइए
जब कंथा मेरा घर न आज्या मन्नै और बता के चाहिए
घर आली की चिट्ठी जब पहांची फौजी के पास
पढ़ कै आंख्या म्हं पाणी भरग्या मन मैं हुअया उदास
संग के साथी बूझण लागे के बात हुई मेरे भाई
घर तैं चिट्ठी आई सै उड़ै याद करै मेरी ब्याही
अगले दिन अफसर के आगै जाकै करी सलाम
बीस रोज की छुट्टी दे दयो कहै दिया हाल तमाम
अफसर बात न समझ गया था दिल का घणा मुल्याम
अगले महीने घरां भेज दयूं इब लिए कालजा थाम
छुट्टी की जिब बात सुणी वो होग्या मन मैं प्रसन्न
बीस रोज की छुट्टी आकै घरां प्यारी के करे दर्शन
बीस रोज मैं खा पी कै चेहरे पै आग्यी आब्बी
तड़कै दुलहैंडी खेल्यांगे न्यूं समझावण लागी भाभी
तड़कए सारे कट्ठे होगे भीड़ हुई थी गोर्यां म्हं
भाभियां के चले कोरड़े मस्ती छाग्यी छोरयां म्हं
छुट्ठी काट कै उल्टा चाल्या जब याद हाजरी आई
उसकै फिक्र मैं फौजण न आज रोटी भी ना खाई
धोरै बैठकै उसकी जेठाणी लागी फेर उसनै समझाण
देश की रक्षा करतब फौजी का अन्न उगावै किसान
एक सीमा पै दूसरा खेत म्हं हरदम चौकस खड़े पावैं
खुशिया रहैं बसन्ती सारै सदा न्यूं रल मिल मौज उड़ावैं