Last modified on 22 जून 2009, at 18:54

आयी देखत मनमोहनकू / मीराबाई

आयी देखत मनमोहनकू। मोरे मनमों छबी छाय रही॥ध्रु०॥
मुख परका आचला दूर कियो। तब ज्योतमों ज्योत समाय रही॥२॥
सोच करे अब होत कंहा है। प्रेमके फुंदमों आय रही॥३॥
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर। बुंदमों बुंद समाय रही॥४॥