भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आरति श्रीवृषभानुलली की / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:31, 9 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आरति श्रीवृषभानुलली की।
सत-चित-‌आनँद-कंद-कली की॥

भय-भंजिनि भव-सागर-तारिनि,
पाप-ताप-कलि-कल्मष-हारिनि,
दिब्य-धाम गोलोक-बिहारिनि,
जन-पालिनि जग-जननि भली की॥-१॥

अखिल विश्व आनन्द-विधायिनि,
मंगलमयी सुमंगलदायिनि,
नंद-नँदन-पद-प्रेम-प्रदायिनि,
अमिय-राग-रस रंग-रली की॥-२॥

नित्यानन्दमयी आह्लादिनि,
आनँद-घन-‌आनंद-प्रसाधिनि,
रसमयि, रसमय-मन-‌उन्मादिनि,
सरस कमलिनी कृष्ण-‌अली की॥-३॥

नित्य निकुंजेश्वरि रासेश्वरि,
परम-प्रेमरूपा परमेश्वरि,
गोपिगणाश्रयि गोपिजनेश्वरि,
विमल बिचित्र-भाव-‌अवली की॥-४॥