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आरति श्री गायत्रीजी की / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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(तर्ज आरती-ताल कहरवा)

आरति श्री गायत्रीजी की।
 स्मितवदना सावित्रीजी की॥
 यज्ञप्रिया यज्ञमयि वाणी।
 लक्ष्मी वेदजननि ब्रह्मात्तणी।
 वृषभासना रुचिर रुद्राणी।
 मंगलमयी परम सुश्री की।
 आरति श्री गायत्रीजी की॥
 सकल वेद मन्त्रों की स्वामिनि।
 सुर-सेविता सुमंगल-धामिनि।
 शीतल नित्य दीप्तिमयि दामिनि।
 तम हारिणि विशुद्धतम धी की।
 आरति श्री गायत्रीजी की॥
 दुःख-दुरित-दारिद्रय-विनाशिनि ।
 सुख-शुभ-सुकृति-विभूति-विकासिनि ।
 सतत सच्चिदानन्द-विलासिनि।
 नाशिनि महामोह-रजनी की।
 आरति श्री गायत्रीजी की॥
 विश्व-जननि मा विश्वाधारा।
 पावन स्नेह-सुधा की धारा।
 तुरत बहाकर करुणागारा।
 दूर करो सब ज्वाला जी की।
 आरति श्री गायत्रीजी की॥