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आरस सोँ आरत सँभारत न सीस पट / पद्माकर


आरस सोँ आरत सँभारत न सीस पट ,
गजब गुजारत गरीबन की धार पर ।
कहैं पदमाकर सुरा सोँ सरसार तैसे ,
बिथुरि बिराजैं बार हीरन के हार पर ।
छहरि छहरि छिति छाजत छरा के छोर,
भोर उठि आई केलि मन्दिर दुवार पर।
एक पग भीतर औ एक देहरी पै धरै ,
एक कर कंज एक कर है किवार पर


पद्माकर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।