भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आराइशे-खुर्शीदो-क़मर किसके लिए है / 'अना' क़ासमी

Kavita Kosh से
वीरेन्द्र खरे अकेला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:29, 26 अप्रैल 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


आराइशे-खुर्शीदो-क़मर<ref>चाँद तारों की सजावट</ref>किसके लिए है
जब कोई नहीं है तो ये घर किसके लिए है

मुझ तक तो कभी चाय की नौबत नहीं आई
होगा भी बड़ा तेरा जिगर किसके लिए है

हैं अपने मरासिम<ref>ताल्लुक़ात</ref>भी मगर ऐसे कहां हैं
इस सम्त इशारा है मगर किसके लिए है

है कौन जिसे ढूंढ़ती फिरतीं हैं निगाहें
आंखों में तेरी गर्दे-सफ़र किसके लिए है

अब रात बहुत हो भी चुकी बज़्म <ref>प्रोग्राम</ref>शुरू हो
मैं हूं न यहां दर पे नज़र किसके लिऐ है

अशआर की शोख़ी तो चलो सबके लिए हाँ
लहजे में तेरे ज़ख़्मे-हुनर किसके लिए है

शक़ था तिरे तक़वे<ref>बे दाग छबि</ref>पे ‘अना’ पहले से मुझको
वो ज़ोहराजबीं<ref>सुंदरी</ref>कल से इधर किसके लिए है

शब्दार्थ
<references/>