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आर्गन बज रहा है गिरजे में / इवान बूनिन

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ऑर्गन बज रहा था गिरजे में
कभी-कभी गुस्सा आता है मन में
तो कभी उफ़नता उल्लास है
पर आज आत्मा उदास है
रो रही है, गा रही है
वह आज बेहद निराश है

वह हतभागी
शोक में कभी गाती है
तो कभी प्रभु से गुहार ये लगाती है-

ओ सुखदाता! ओ दुखदाता!
ओ दीनबंधु!
पृथ्वी के प्राणियों का भला कर
हम दरिद्र हैं, तुच्छ हैं, ग़रीब हैं
ईर्ष्या, द्वेष, डाह, बैर करते हैं सब
मन में तू हमारे नेकी और दया भर

ओ यीशु!
महिमा तेरी अपरम्पार
ओ सलीब पर लटके हुए रवि!
पीड़ा सही तूने अपार
सूली पर झुकी हुई है तेरी छवि
हृदय में हमारे भी छिपे हैं पवित्र-स्वर
सिर्फ़ तुझसे ही है आशा
दे हमारे मन के भावों को तू
पावन और पुनीत
जीवन की भाषा

(1889)
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय