http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%86%E0%A4%B2%E0%A4%B8_%E0%A4%9B%E0%A5%8B%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A5%8B_/_%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B2_%E0%A4%B6%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE&feed=atom&action=historyआलस छोड़ो / दीनदयाल शर्मा - अवतरण इतिहास2024-03-29T01:11:03Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%86%E0%A4%B2%E0%A4%B8_%E0%A4%9B%E0%A5%8B%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A5%8B_/_%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%A6%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B2_%E0%A4%B6%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE&diff=189713&oldid=prevअनिल जनविजय: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीनदयाल शर्मा }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> मुर्गा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया2015-03-18T10:10:36Z<p>'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीनदयाल शर्मा }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> मुर्गा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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|रचनाकार=दीनदयाल शर्मा<br />
}}<br />
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<poem><br />
मुर्गा बोला- जागो भैया,<br />
बिस्तर में क्यों पड़े हो तुम ।<br />
आलस को अब दूर भगाओ,<br />
सोच रहे हो तुम गुमसुम ।<br />
<br />
आलस है हम सबका दुश्मन<br />
नहीं काम करने देता ।<br />
जो भी होता पास हमारे,<br />
उसको भी यह हर लेता ।<br />
<br />
बाड़े में भी बोली गैया<br />
बिस्तर में क्यों पड़े हो तुम ।<br />
आलस को अब दूर भगाओ,<br />
सोच रहे हो तुम गुमसुम। <br />
<br />
चीं-चीं करती कहे चिरैया,<br />
बिस्तर में क्यों पड़े हो तुम ।<br />
आलस को अब दूर भगाओ,<br />
सोच रहे हो तुम गुमसुम ।<br />
<br />
गाड़ी का कहता है पहिया,<br />
बिस्तर में क्यों पड़े हो तुम ।<br />
आलस को अब दूर भगाओ,<br />
सोच रहे हो तुम गुमसुम ।<br />
<br />
आलस छोड़ो सबकी मानो<br />
अरे! अब तो उठ जाओ तुम ।<br />
आलस को अब दूर भगाओ,<br />
सोच रहे हो तुम गुमसुम ।<br />
</poem></div>अनिल जनविजय