जंगली डगर पर चल रहा हूँ अकेला फिर भी अकेला नहीं हूँ । हे जीवन... हे जीवन... वादा करो नदी पर आकर इस जंगल के आगोश में रोज़ कुछ समय बिताओगे । अपने आप से मिलकर यहीं सेमल के बीज की तरह कुलाचे मारता है मन-यौवन । कैसे छोड़ सकता हूँ इस एकांत में -- इस आलिंगन का स्वाद ।