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"आलिंगन तरसे / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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मिलता कहाँ मन
 
मिलता कहाँ मन
 
जग- निर्जन वन।
 
जग- निर्जन वन।
32
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गुलाबी नभ
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करतल किसी का
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पढ़ा औचक
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नाम था लिखा मेरा
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अग-जग उजेरा।
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17:02, 2 दिसम्बर 2019 के समय का अवतरण

29
मन उन्मन
तरसे आलिंगन
कहाँ खो गए
अब चले भी आओ
परदेसी हो गए !!
30
आकर लौटे,
बन्द द्वार था मिला
भाग्य की बात,
दर्द मिले मुफ़्त में
प्यार माँगे न मिले।
31
टूटते कहाँ
लौहपाश जकड़े
मन व प्राण
मिलता कहाँ मन
जग- निर्जन वन।