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"आवति दीवारी बिलखाइ ब्रज-वारी कहैं / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’" के अवतरणों में अंतर
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आवति दीवारी बिलखाइ ब्रज-वारी कहैं | आवति दीवारी बिलखाइ ब्रज-वारी कहैं | ||
− | अबकै हमारै गाँव गोधन पुजैहै को । | + | ::अबकै हमारै गाँव गोधन पुजैहै को । |
कहै रतनाकर विविध पकवान चाहि | कहै रतनाकर विविध पकवान चाहि | ||
− | चाह सौं सराहि चख चंचल चलैहै को ॥ | + | ::चाह सौं सराहि चख चंचल चलैहै को ॥ |
निपट निहोरे जोरि हाथ निज साथ ऊधौ | निपट निहोरे जोरि हाथ निज साथ ऊधौ | ||
− | दमकति दिव्य दीपमालिका दिखैहै को । | + | ::दमकति दिव्य दीपमालिका दिखैहै को । |
कूबरी के कूबर तैं उबारि न पावैं कान्ह | कूबरी के कूबर तैं उबारि न पावैं कान्ह | ||
− | इंद्र-कोप-लोपक गुबर्धन उठैहै को ॥86॥ | + | ::इंद्र-कोप-लोपक गुबर्धन उठैहै को ॥86॥ |
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12:47, 3 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण
आवति दीवारी बिलखाइ ब्रज-वारी कहैं
अबकै हमारै गाँव गोधन पुजैहै को ।
कहै रतनाकर विविध पकवान चाहि
चाह सौं सराहि चख चंचल चलैहै को ॥
निपट निहोरे जोरि हाथ निज साथ ऊधौ
दमकति दिव्य दीपमालिका दिखैहै को ।
कूबरी के कूबर तैं उबारि न पावैं कान्ह
इंद्र-कोप-लोपक गुबर्धन उठैहै को ॥86॥