मन की अलमारी के किसी ख़ूबसूरत कोने में
जहाँ नैप्थालीन की गोलियाँ नहीं रखी हों
वहाँ एक हल्की सी रौशनी भी पहुँचती हो
वहीं तह और इस्त्री कर रखी हैं तुम्हारी
रवेदार आवाज़ के सारे कसीदे और बुनावट को
फुरसत में हम पहन लेते हैं आपके दिए शब्दों का
यह पैरहन बहुत जँचता है मुझपर !