Last modified on 19 दिसम्बर 2020, at 23:15

आवाज़ की बुनावट को खोलती एक प्रेमकथा / अनामिका अनु

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:15, 19 दिसम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनामिका अनु |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मन की अलमारी के किसी ख़ूबसूरत कोने में
जहाँ नैप्थालीन की गोलियाँ नहीं रखी हों
वहाँ एक हल्की सी रौशनी भी पहुँचती हो
वहीं तह और इस्त्री कर रखी हैं तुम्हारी
रवेदार आवाज़ के सारे कसीदे और बुनावट को
फुरसत में हम पहन लेते हैं आपके दिए शब्दों का
यह पैरहन बहुत जँचता है मुझपर !