भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आसपास / विजय वाते

Kavita Kosh से
वीनस केशरी (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:52, 18 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय वाते |संग्रह= दो मिसरे / विजय वाते;ग़ज़ल / वि…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

डोलते फिरते हैं तारे चंद्रमा के आस पास
जल रहा सूरज अकेला कौन जाए आस पास

आज उतारी है जमीं पर नभ के लोंगों की बारात
ढूंढ लो तुम चाँद को होगा यही पे आस पास

तय शुदा दो चार जुमले कुछ अदाएं तयशुदा
है ये साहिब की मुहब्बत या इसी के आस पास

कब किसे इस जिन्दगी में चाहने से कुछ मिला
जो मिला आधा अधूरा या नहीं के आस पास