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आसमानों के रास्तों से / अनुभूति गुप्ता

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आसमानों के रपटीले
रास्तों से, पथों से,
रवि-रश्मि
तिरछी उतरती है
वृक्ष की डाली पर
बैठी नन्हीं चिड़िया
अकल्पित-अप्रत्याशित
निराशा से
तितर-बितर हुआ
घोंसला तकती है...
उसकी आँखों का मेघ
दिन-रात बरसता है
हौले से,
वेदना के मंज़र को
सुस्त पवन के
कानों में कहता है...
ये नीली-पीली मछलियाँ
समन्दर की
गुदगुदाती मखमली
तन वाली लहरों से
अपना मन
भिगोना चाहती हैं
तारिकाओं का
झिलमिलाना
देखना चाहती हैं।
पर्वतों के
ऊँचे-ऊँचे कन्धों पर
वेदना का भार
प्रतिपल रहता है
काली रातों में
ठिठकने को
उजियाला चीखता है।
प्रमत्त बादल
ज़ोर-ज़ोर से
धरा पर बरसता है
फिर भी...
नदियों का अन्तर्मन
मौलिक जल-धारा को
तरसता है।
घाटियों से
वीरानगी पहाड़ों की
चींखती है
पक्षियों की चहल-पहल
अब वहाँ
कहाँ दिखती है.