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आसान शिकार / मंगलेश डबराल

मनुष्य की मेरी देह ताक़त
के लिए एक आसान शिकार है
ताक़त के सामने वह इतनी दुर्बल है
और लाचार है
कि कभी भी कुचली जा सकती है
ताक़त के सामने कमज़ोर और
भयभीत हैं मेरे बाल और नाख़ून
जो मेरे शरीर के दरवाज़े पर ही
दिखाई दे जाते हैं
मेरी त्वचा भी इस कदर पतली
और सिमटी हुई है
कि उसे पीटना बहुत आसान है
और सबसे अधिक नाज़ुक और
ज़द में आया हुआ है मेरा हृदय
जो इतना आहिस्ता धड़कता है
कि उसकी आवाज़ भी शरीर से
बाहर नहीं सुनाई देती
ताक़त का शरीर इतना
बड़ा इतना स्थूल है
कि उसके सामने मेरा अस्तित्व
सिर्फ़ एक सांस की तरह है

मिट्टी हवा पानी ज़रा सी आग
थोड़े से आकाश से बनी है मेरी
देह
उसे फिर से मिट्टी हवा पानी और
आकाश में मिलाना है आसान
पूरी तरह भंगुर है मेरा वजूद
उसे बिना मेहनत के मिटाया जा
सकता है
उसके लिए किसी अतिरिक्त
हरबे-हथियार की ज़रूरत नहीं
होगी
यह तय है कि किसी ताक़तवर
की एक फूंक ही
मुझे उड़ाने के लिए काफ़ी होगी
मैं उड़ जाऊंगा सूखे हुए पत्ते नुचे
हुए पंख टूटे हुए तिनके की तरह

कभी-कभी कोई ताक़तवर थोड़ी
देर के लिए सही
अपने मातहतों को सौंप देता है
अपने अधिकार
उनसे भी डरती है मेरी मनुष्य देह
जानता हूं वे उड़ा देंगे मुझे अपनी
उधार की फूंक से.