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आस्था / जगदीश गुप्त
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जो कुछ प्राणों में है
प्यार नहीं,
पीर नहीं,
प्यास नहीं —
जो कुछ आँखों में है
स्वप्न नहीं,
अश्रु नहीं,
हास नहीं —
जो कुछ अंगों में है
रूप नहीं,
रक्त नहीं
माँस नहीं —
जो कुछ शब्दों में है
अर्थ नहीं,
नाद नहीं,
श्वास नहीं —
उस पर आस्था मेरी।
उस पर श्रद्धा मेरी।
उस पर पूजा मेरी।