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आस्था / नवनीत पाण्डे

इस अरअराती गहराती डराती सांझ से
चुका नहीं हूं मैं
मेरी आस्था के कंगूरों में
आज भी जगमगाते हैं
सूरत, चांद, तारे
मेरी जय-सरिता का उद्भव, बहाव
यहीं से होगा-होगा-होगा...