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आस तो काहू की नहिं मिटि जग में / प्रतापकुवँरि बाई

आस तो काहू की नहिं मिटि जग में भये रावण बड़ जोधा।
साँवत सूर सुयोधन से बल से नल से रत बादि बिरोधा॥
केते भये नहिं जाय बखानत जूझ मुये सब ही करि क्रोधा।
आस मिटे परताप कहै हरि-नाम जपेरू बिचारत बोधा॥