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आस / हरिमोहन सारस्वत

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आस जरूरी है जीने के लिए
प्यास जरूरी है पीने के लिए
शब्द हो या सांस
आस जरूरी है...

जोगन बन सपनों में थिरकती है
बरसने को अपनों से लिपटती है
दर्द हो या प्रार्थना
आस जरूरी है...

उदासी कचोटती है, दर्दीले किस्से बटोरती है
भीगी आंखें खारा समन्दर परोटती है
सागर हो या थार
आस जरूरी है...

हाथ में थामे हुए बादल का कोई छोर
अलाव में सिकता खामोशियों का शोर
जिन्दगी हो या मौत
आस जरूरी है..