भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आहा! / दुष्यन्त" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दुष्यन्त }} {{KKCatKavita}} <poem> टुकड़ा-टुकड़ा धूप सर्दी की …)
 
 
पंक्ति 8: पंक्ति 8:
 
सर्दी की
 
सर्दी की
  
बूंद-बूंद खुशियां
+
बूंद-बूंद खुशियाँ
 
और
 
और
 
आँसू-आँसू प्यास
 
आँसू-आँसू प्यास

03:10, 16 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

टुकड़ा-टुकड़ा धूप
सर्दी की

बूंद-बूंद खुशियाँ
और
आँसू-आँसू प्यास

दाना-दाना भूख

सचमुच
ज़िन्दगी कितनी ख़ूबसूरत है.

 
मूल राजस्थानी से अनुवाद- मदन गोपाल लढ़ा