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आहा! / दुष्यन्त

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टुकड़ा-टुकड़ा धूप
सर्दी की

बूंद-बूंद खुशियाँ
और
आँसू-आँसू प्यास

दाना-दाना भूख

सचमुच
ज़िन्दगी कितनी ख़ूबसूरत है.

 
मूल राजस्थानी से अनुवाद- मदन गोपाल लढ़ा