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आहे, बारहे बरीस केरी भेलै बेटी गिरजा / अंगिका लोकगीत

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बारह वर्षों तक गिरिजा ने शंकर को प्राप्त करने के लिए तपस्या की। घर लौटने पर शिव से उनका विवाह निश्चित हुआ। उस भिखारी को देखकर गिरिजा की माँ रोने-धोने लगी, लेकिन गिरिजा ने अपनी माँ को सांत्वना देते हुए कहा कि जिन्हें तुम भिखारी समझ रही हो, वही मेरे लिए सर्वस्व हैं और मैं उन्हीं को लेकर राज भोगूँगी।

आहे, बारहे बरीस केरी<ref>की</ref> भेलै बेटी गिरजा, रघुबर देलै बनबास हे।
बारहे बरीस तप करू बेटी गिरजा, तबे होयतो सिव से बिआह हे॥1॥
भोजन तेजल गिरिजा, बसतर<ref>वस्त्र</ref> तेजल, तेजल घरअ ओ दुआरि हे।
आहे, घरअ छोड़ी गिरजा महाबन पैसल, धैलन संकर पर धेआन हे॥2॥
एक मासे बीतल गिरजा, दुइ मासे बीतल, बीतल बारहे बरीस हे।
महाबन छोड़ि गिरजा, घरो चढ़ि आयल, बिआह के चरचो<ref>चर्चा</ref> न होए हे॥3॥
जनु कानू<ref>रोओ</ref> अम्माँ, जनु रोबउ अम्माँ, जनु पढू़ बाबा सराप<ref>शाप</ref> हे।
अहे हमरो बर, हमर पितिया<ref>चाचा</ref> खोजल, जिनि बर खोजले भिखारि हे॥4॥
जटा देख अहे गिरजा, तोंहे डेराएब, भभुति देखि उदास हे।
अहे सरूप देखि गिरजा, घरअ पैसी बैठली<ref>बैठी</ref>, किए लै<ref>क्या लेकर</ref> भोगब एहो राज हे॥5॥
जाटा मोरा लेखे आलरी झालरी<ref>साज-शृंगार</ref>, भभुति मोरा अहिबात हे।
अहे, सरूप मोरा लेखे सखी सहीलोरिन<ref>सहेली</ref>, सिब लै भोगब राज हे॥6॥

शब्दार्थ
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