भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आह किस तरह तिरी राह मैं घेरूँ कि कोई / सौदा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आह किस तरह तिरी राह मैं घेरूँ कि कोई
सद्दे-रह हो न सके उम्र चली जाती का
ये कहा शैख़ ने शैताँ से कि आ, हमसे मिल
आशना मत हो तू ’सौदा’ से ख़राबाती का
कहा उनने कि है मेरी तो सआदत इसमें
लेक है ख़ौफ़ मुझे आपकी बदज़ाती का