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आह / गोरख प्रसाद मस्ताना

एक भयंकर आग
एक दहन एक तपन
अंतर जवाला
जिसकी दाह में
चमड़े की क्या बिसात
लोहे की क्या औकात
भस्म हो जा है अश्म
एक अलौकिक, अदृश्य हथियार
तीक्ष्ण, तीव्र धार
जिसकी मार से धराशायी हो गयी
लंका
दुर्योधनी तेवर हो गये
तार तार
ध्वस्त हो गयी रावणी नीतियों
सावधान! वर्तमान
निंरकुंशता
मानवता ही सिसकियों को सुनों
समझों उसकी धाह को
जल जायेगी साम्राज्यवाद
पिघल जायेगा महाशक्ति
होने का दंभ टूट जायेगा
घमंड
किसका रहा है जो रहेगा?
वक्त की आह अथाह है
गला डालेगी जला डालेगी
इसकी तपन में
क्या नहीं गला है?
यह अद्भुत बला है
चेतो चेतो
समय की धर बड़ी तीक्ष्ण है
बड़ी तेज इसका वार
मार चेतो