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आशना हैं तेरे क़दमों से वह वो राहें जिन पर
उसकी मदहोश जवानी ने इनायत की है
कारवां कारवाँ गुज़रे हैं जिनसे इसी र’अनाई के
जिसकी इन आंखों आँखों ने बेसूद इबादत की है
तुझ से खेली हैं वह महबूब हवाएँ जिन मेंजिनमें
उसके मलबूस की अफ़सुर्दा महक बाक़ी है
ज़िन्दगी जिन के तसव्वुर में लुटा दी हमने
तुझ पे उठी हैं वह खोई-खोई साहिर आंखेंआँखें
तुझको मालूम है क्यों उम्र गंवा गँवा दी हमने
हम पे मुश्तरका हैं एह्सान एहसान ग़मे -उल्फ़त के
इतने एह्सान कि गिनवाऊं तो गिनवा न सकूंसकूँ
हमने इस इश्क़ में क्या खोया क्या सीखा है
जुज़ तेरे और को समझाऊं समझाऊँ तो समझा न सकूंसकूँ
आजिज़ी सीखी ग़रीबों की हिमायत सीखी
यास-ओ-हिर्मां के दुख-दर्द के म’आनि म’आनी सीखे
ज़ेर द्स्तों के मसाएब को समझना सीखा
जब कहीं बैठ के रोते हैं वह वो बेकस जिनके
अश्क आंखों में बिलकते हुए सो जाते हैं
जब कभी बिकता है बाज़ार में मज़दूर का गोश्त
शाहराहों पे ग़रीबों का लहू बह्ता बहता है
आग-सी सीने में रह-रह के उबलती है न पूछ
अपने दिल पर मुझे क़ाबू ही नहीं रहता है