भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आ गई फिर याद / उर्मिल सत्यभूषण

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बहुत दिन के बाद
आ गई फिर याद
जो फरीदाबाद।
जिंदगी का एक हिस्सा
कर गये आबाद
बंधनों के बीच कुछ
एहसास थे आज़ाद
संघर्ष तो कमतर न थे
लेकिन थे हम दिलशाद
दोस्तों का दल था
सुख-दुःख बांटता था
धूप देकर घने काले
बादलों को छांटता था
जब घिरे अवसाद से
वो दे गये आह्लाद
स्वर्ण सरसिज
खिलखिलाते धूप से चेहरे
झिलमिलाये, अब घुलेंगे
शीत के कुहरे
हाँ दिनकर सुन रहा है
दिवस की फरियाद
आ गये तुम याद।