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आ गया सूरज बहुत नज़दीक अब कुछ सोचिए / विनय कुमार

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आ गया सूरज बहुत नज़दीक अब कुछ सोचिए।

आँख रौशन और दिल तारीक़ अब कुछ सोचिए।

आप के हम्माम मलमल के चंदोवे क्यों हुए छत दरो दीवार क्यों बारीक़ अब कुछ सोचिए।

आपकी ईमानदारी भी कमीज़ें तय करें बात कुछ लगती नहीं है ठीक अब कुछ सोचिए।

यह करिष्मा सिर्फ बातों से नहीं होगा जनाब तोड़नी है चुप्पियों की लीक अब कुछ सोचिए।

कठघरे में धूप, जकड़ी बेडियों में चांदनी है धुएँ के हाथ में तहक़ीक़ अब कुछ सोचिए।

आपने गर्दन झुकायी थी अक़ीदत से मगर तन गयी तलवार सी तौफ़ीक़ अब कुछ सोचिए।