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आ जैहो बड़े भोर दही लै के (कार्तिक स्नान का गीत) / बुन्देली

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

आ जैहो बड़े भोर दही लै के, आ जैहो बड़े भोर।।टेक।।
नें मानो कुड़री धर राखो, मुतियन लागी कोर।
नें मानो मटकी धर राखो, सबरे बिरज कौ मोल।
नें मानो चुनरी धर राखो, लिख है पपीहरा मोर।
नें मानो गहने धर राखो, बाजूबंद हमेल।
चंद्रसखी भज बालकृष्ण छब, छलिया जुगलकिशोर।