Last modified on 31 अक्टूबर 2010, at 03:21

आ बैठ बात करां / रामस्वरूप किसान

Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:21, 31 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>आ बैठ बात करां एक दूजै नै देखां कित्ता बरस बीतग्या सागै रैंवतै …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आ बैठ बात करां
एक दूजै नै देखां

कित्ता बरस बीतग्या
सागै रैंवतै थकां,
कित्ता नेड़ै-नेड़ै रैया आपां
पण देख नीं सक्या
एक दूजै नै।
झूठ नीं बोलूं
म्हैं तो नीं देख सक्यो
थारी थूं जाणै।

बरत्यो अवस है
थारो रूं-रूं
पण देख नीं सक्यो
ठोडी रो तिल
जकै रौ रंग
म्हारी अणदेखी रै अंधारै रळग्यो।

माफ करज्यो
औसाण ही नीं मिल्यो
अै दांत कद टूटग्या थारा?
अर अै धोळा बाळ?
आ बैठ, गौर सूं देखूं थनै
कदे भाजो-भाज में
आ जिनगाणी भाज नीं जावै।