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इंतज़ार-1 / नीरज दइया

कुछ कहा था मैंने!
क्या कहा था मैंने?
कुछ शब्द थे
चाहता था जिनको कहना!
जान लिए कैसे तुमने
बिना कहे ही....

तुम्हारी सुनकर- ‘नहीं’
क्यों करता हूं- इंतजार?
लगता है कि तुम आओगी!
बार बार सुनता हूं आहट
इंतजार में तुम्हारे
मैं बन गया हूं- दरवाजा!
अब इस निर्जीव को
तुम्हारे स्पर्श का इंतजार है....