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इंतज़ार / सरोज सिंह

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अकसर इंतज़ार की दहलीज़ पर
अपनों के लौट आने का
होने लगता है एतबार
जैसे कि जाती हुई नदी
आती हूँ कहकर
पर्वत, घाटियों से होती हुई
फिर लौट आती है सावन में
पर अफ़सोस
इस तरह हमेशा
कहाँ लौट पाते हैं सब
"अभी आता हूँ"
कहकर जाते हुए लोग!