भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इंदर बेगो आव / कमल सिंह सुल्ताना

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:47, 8 दिसम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कमल सिंह सुल्ताना |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सूख गया सब रूंखड़ा,थूं ही कर अब छांव ।
काळ धरा रयो कुरळा,इंदर बेगो आ।।

गाय मिनख प्यासा मरे,भरदे सोन तलाव ।
बरसा एकर बादळी,इंदर बेगो आव ।।

मिनख घराँ में पोढिया,सूनो होग्यो गांव ।
मिळ'र सुख दुख बात करां,इंदर बेगो आव ।।

मेह करै मोवणो,अर हिवडौ हरसाव।
पूजूँ नित नित आपनै, इंदर बेगो आव ।।

नैणां आस निहारियो,खेल मती ना दांव।
उडीक रया तन करसा,इंदर बेगो आव ।।

हालातां खोटी करी,सूझै नहीं उपाव ।
नदियां घटियों नीर अब,इंदर बेगो आव ।।

अगनी बालै आंतरा, घमकावै धर घाव ।।
पुकार सुणनै पाटवी,इंदर बेगो आव ।।

बळती धरती बळबळै,पाछी सुरग बणाव ।
हरियल कर दे ठावकी,इंदर बेगो आव ।।

टाबर नैनां टोळियां,भर आँख्यां में भाव ।
खेलण सारूं खिलखिले,इंदर बेगो आव ।।

जोय जोय नै हारियो,जीव मती तरसाव ।
किरपा कर तूं केशवा,इंदर बेगो आव ।।