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"इंद्रजाल / अनिल विभाकर" के अवतरणों में अंतर

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12:35, 22 मई 2011 का अवतरण


यह है इंद्रप्रस्थ का इंद्रजाल
 
इसमें भूखी-नंगी जनता सुनहरे सपने देखती है

और महारानी के दर्शन भर से धन्य हो जाती है।

गरीब जनता गौर से निहारती है महारानी को

उनमें उसे सत्यहरिश्चंद्र की आत्मा नजर आती है

उसे लगता है वे महारानी नहीं, सत्य हरिश्चंद्र की नया अवतार हैं
 

इंद्रप्रस्थ की रानी कहती है देश में भ्रष्टाचार बढ़ गया

करोड़पतियों की संख्या तो बढ़ी

गरीबों की आबादी में भी इजाफा हुआ

रानी कहती है गरीबी और भ्रष्टाचार बेहद चिंता की बात

जनता जवाब नहीं मांगती

वह तो मंत्रमुग्ध है उनके सम्मोहन में
 

ऋषियों का यह देश चाणक्य का भी है

चंद्रगुप्त का भी

सपने तो टूट ही रहे हैं

जिस दिन टूटेगा इंद्रजाल जनता पूछेगी

रानी जी! फिर कलमाडी को क्यों बचाया?

और राजा को क्यों हटाया?

महारानी जी! थरूर पर हुई थू-थू

फिर भी कम नही हुई मनमोहन की मुस्कान

ये सब के सब तो आप के ही प्यादे हैं न

राज आपका

बिसात आपकी प्यादे आपके

संविधान में सरकार भले ही चलती है संसद से

हकीकत यह है कि दस जनपथ की इच्छा के बिना

सात रेस कोर्स का पत्ता तक नहीं हिलता
 

रानी जी, पूरा देश जानता है

आपकी मुस्कान से ही मुस्कुराते हैं करोड़पति - अरबपति

आपके चह्कने से आमजन हो जाता है मायूस

दरअसल सिर्फ कहने को जनपथ में रहती हैं आप

भले ही इस देश में आपका अपना कोई घर-बार नहीं

हकीकत में आप राजपथ की रानी हैं

तौर-तरीके और रहन-सहन से तो यही लगता है
 
आप इंद्रप्रस्थ की महारानी हैं।
  
 
समय आने दीजिए महारानी जी!
 
भूखी-नंगी जनता करेगी आपकी करतूतों का पूरा हिसाब
 
पूछेगी क्या हुआ अफजल का, कहां है कसाब?
 
पूछेगी क्या संसद से भी बड़ा है होटल ताज?
 
महारानी जी यही है आपका राज?
 
 
जरूर टूटेगा एक दिन इंद्रजाल
 
और भूखी-नंगी जनता को लगेगा
 
आपमें नहीं बसती है सत्य हरिश्चंद्र की आत्मा।